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________________ समयार्थ,बोधिनी टीका प्र. श्र. अ २ उ. २ निजपुत्रेभ्य भगवदादिनाथोपदेश ५३७ .. 11: मदकरणाभावे सति किं कर्त्तव्यं तदर्शयति सूत्रकारः-'जे यावी' इत्यादि । मलम्जे यावि अणायगो सिया जेवि य पेसगपेसए सिया । ९ १० १२ ११ १३ जे मोणपयं उवट्ठिए णोल्लज्जे समयं सयाचरे ॥३॥ . । छाया" यश्चाप्यनायकः स्यात् योऽपि च प्रेष्यप्रेष्यः स्यात् । '. यो मौनपदमुपस्थितो नो लज्जेत समतां सदाचरेत् ॥३॥ अन्वयार्थ:___ (जे यावि) यश्चापि (अणायगे) अनायकः नायकरहितस्वयंप्रभुश्चक्रवादिः अभिमान करने के अभाव में क्या करना चाहिए, सो सूत्रकार दिखलाते हैं "जे यावि इत्यादि । " शब्दार्थ-'जे यावि-यश्चापि' जो कोई 'अणायगे-अनायकः' नायक रहित स्वयं प्रभु चक्रवर्ती आदि है 'य-च' तथा 'जेवि-योऽपि' जो 'पेसग पेसए सिया-प्रेपकप्रेपकः स्यात् । दास के भी दास है थे दोनों में 'जो-यः, जो कोई भी 'मोणपयं-मौनपदं मौनपद अर्थात् संयममार्ग में 'उवहिएउपस्थित उपस्थित हो 'णो लज्जे-न लज्जेत, उन्हें लज्जा न करनी चाहिए। किन्तु 'सया-सदा' सदा सर्व काल 'समयं चरे-समतां चरेत् , समभावसे व्यवहार करना चाहिए ॥३॥ - अन्वयार्थ जिस का कोई नायक नहीं है अर्थात् जो चक्रवर्ती आदि स्वयं प्रभु 1, अलिभाननी परित्याग ४शन, शु १२ नये ते वे सूत्रा२ ४ ४२ छ'जे यावि त्याह____हाथ-'जे यापि-यश्चा' २ 'अणायगे-अनाया' नाय 4॥२ स्वय प्रभु यता ' वगैरे छ 'य-च' तथा 'जेवि-योऽपि' है 'पेसगपेसए-प्रेषकमेपकः हास ना ५९ हास' 'सिया-स्यात्' हाय ते पनेमा 'मोणपय-मौनपद' भौनपद अर्थात् सं यभभाभा 'उवहित उपस्थित' वतमान डाय ‘णो लज्जेत-न लज्जेत' तेभ शरम 'न ४२वी नये ५२तु 'सया-सदा' स 'समय चरे-समतां चरेत्' સમભાવથી વ્યવહાર કરે જોઈએ આવા જેમને કેઈ નાયક નથી એટલે કે ચક્રવર્તી આદિ જેલોકો પિતે જ સમર્થ છે, અને सू. ६८ सूत्राथ -
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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