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मार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ २ उ १ भगवदादिनाथकृतो निजपुत्रोपदेश. ४९९ सा) क्रोधकातरिकादिपीपणाः तत्र क्रोधग्रहणान्मानो गृहीतः कातरिका तदग्रहणालो गृहीतः आदिना शेपमोहनीयपरिग्रहः एतेषां पीपणातेषामेपनेतारः । तथा (पाणे) प्राणिनः- द्वीन्द्रियादीन् जीवान् (सव्वंसो) 'सर्वशः- मनोवीकायकर्मभिः (ण डंगति) ननन्ति न विराधयन्तीत्यर्थः । (पावाओं) पापात्सर्वतः सावधानुष्ठानात् (विरया) विरता: - निवृत्ताः ततश्च (अभिनिव्बुडा) अभिनिर्वृत्ताः क्रोधाद्युपशमेन शान्ति भूताः, अथवा अभिनिवृता मुक्ता इव Free मुक्त इमे द्रष्टव्या इति भावः ॥ १२ ॥
भारती
79 टीका
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विरया' विरता हिंसानृतस्तेयादि पापेभ्यः पापकर्मभ्यो विरताः निवृत्ताः तथा 'वीरा' वीराः वि - विशेषेण ( ईरयंति) पराक्रामति तपः संयमाभ्यां ज्ञानाअन्वयार्थ --
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'जो वीर प्राणातिपात आदिसे विरत हैं समीचीन रूपसे आरंभका त्याग करके उत्थित " - प्रव्रजित हुए हैं, क्रोध, मान, माया और लोभ तथा सम्पूर्ण मोहनीय कर्म नष्ट कर देने वाले हैं जो प्राणियों का मन वचन और काय 'हनन नहीं' करते हैं, जो पाप अर्थात् सावध क्रिया से सर्वथा निवृत हो The sirat क्रोधादि का उपशम करके शान्त स्वरूप हो गए अथवा जो मुक्तके समान है, वहीं वीर पुरुष है || १२ ||
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- टीकार्थ-' हिंसा, मृपावाद, स्तेयं (चौर्य) आदि पापों से निवृत हो चुके हैं। जो संयम और तपके द्वारा विशेष रूपसे कर्म शत्रुओंका
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वीर पुरुष तो ते माहि पापोथी निवृत्त
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- सूत्रार्थ -
5 यो प्राणातियात हि पापी विस्ता (निवृत्त) था गया होय छे, मो આરંભના સમ્યક્ પ્રકારે ત્યાગ કરીને ઉત્થિત પ્રત્રજિત થઈ ગયા હેાય છે. જેઓ જાધ, સ્માન, માયા અને લાભના તથા માહનીય કર્મોને નાશ કરી નાખનારા હાય છે, જે भन वयनाने डायाथी आशीमोनी डिसा उरता नथी, भेग पायथी (साबंध डियागोर्थी) सर्वथा निवृत्तः थ युञ्ज्या 'छे, म र अधाहिना उपशमीने' नेगो शान्तસ્વરૂપ થઈ, ગયા હોય છે, અથવા જે મુક્તના સમાન જ હોય છે તેમને જ વીર પુરુષ
वाभावें ॥१२॥
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- 1 टीअर्थ /
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अडी शाय से थे प्राणातिपात, युम्यो होय रेमो सयम' भने त
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भृषावाह, स्तेय (शोरी) द्वारा विशेष ३ये ४