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________________ __४१९ समयार्थ यो धनी टीका प्र. श्रु. अ. १उ. पोडशोत्पादनादिदोपनिरूपणम् पोडशोत्पादनादोपैः शङ्कितम्रक्षितादिदशग्रहणपगादोपैश्च दुटो भवितुमईस्यतोऽत्र दत्तैषणापदेन तद्दोपशुद्धिः प्रदर्शिता। ते च पोडशोत्पादनादोपा इमे----"धाई १ दुइ २ निमित्ते ३ आजीव ४ वणीमगे ५ तिगिच्छा ६ य कोहे७ माणे८ माया९, लोभे१० य हवंति दस एए ॥१॥ "पुचि पच्छा संथव ११ विज्जा १२ मंते १३ चुण्ण१४ जोगे१५ य । उप्पायणाइदोसा, सोलसमे मूलकम्मे१६ य ॥२॥ छाया-- धात्री (धात्रीकर्म) १, दूती (दुतीकर्म) २, निमित्तं ३, आजीवः ४ वनीपकः ५, चिकित्सा ६ च, क्रोध:७, मानः८, माया९, लोभश्च१० भवन्ति दश-एते ॥१॥ पूर्व पश्चात्संस्तवः११ विद्या१२ मन्त्र१३ श्र चूर्ण१४ योग१५ श्च । उत्पादनादि दोषाः, पोडशं मूलकर्म १६ च ॥५॥ तत्र-धात्रीकर्म-आहारादि ग्रहणार्थ क्षीर-मन्जन-मण्डन--क्रीडनो--त्सङ्ग धात्रीति पञ्चविधधात्रीविषयककार्यकारणं धात्रीकर्मोच्यते १। दूतीकर्मदुषित हो जाता है। अतएव यहाँ 'दत्तैपणा पद से उन दोपों की भी शुद्धि प्रदर्शित की गई है। उत्पादना के वे सोलह दोष ये हैं (१) धात्री (२) दूती (३) निमित्त (४) आजीव (५) वनीपक (६) चिकित्सा (७) क्रोध (८) मान (९) माया (१०) लोभ (११) पूर्वपश्चासंस्तव (१२) विद्या (१३) मंत्र (१४) चूर्ण (१५) योग और (१६) मूलकर्म, यह उत्पादना के दोष हैं। इनका स्वरूप इस प्रकार है (१) धात्री-कर्मधाएँ पाँच प्रकार की होती है-द्ध पिलाने वाली, नहलानेवाली, श्रृंगार करने वाली, खेलाने वाली और गोदी में लेने वाली इन धायों में से किसी का कार्य करके आहार आदि प्राप्त करना । આદિ ઉત્પાદના દોષોથી અને શક્તિ મિશ્રિત આદિ દસ ગ્રહણૂષણના દેથી દૂષિત થઈ જાય છે તેથી અહીં "દષણ પદ દ્વારા તે દેની શુદ્ધિ પણ પ્રદર્શિત કરવામાં આવી છે સાધુના પિતાનાથી લગાડવામાં આવતા ઉત્પાદનના તે ૧૬ દોષે નીચે પ્રમાણે છે (१) धात्री, (२) इती, (3) निमित्त, (४) मालव, (५) पनी५४, (6) रिसा, (७) आध, (८) भान, ८ भाया, (१०) सोम, ११) पूर्व पश्चात् सस्तव, (१२) विद्या, (१३) मात्र, (१४) यूए, (૧૫) વેગ અને (૧૬) મૂલકમ હવે તે ૧૬ ઉત્પાદન દોષનું સ્વરૂપ પ્રકટ કરવામ આવે છે. (१) धात्री- धात्री पाय प्रा२नी उय छे. दूध पिशवनारी, स्नान ४शवनारी, શણગાર કરનારી, રમાડનારી અને મેળામાં લેનારી. આ ધાત્રીઓમાંથી કેઈપણ ધાત્રીનું કામ કરીને આહારાદિ પ્રાપ્ત કરવાથી ધાત્રિદેષ લાગે છે. '
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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