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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. अ. १ उ ३ आधाकर्माद्याहारभोजने मत्स्यदृष्टान्त ३४९ आधार्मिकाहारमोजिनां कीदृशं कर्मफलं भवतीति प्रतिपादनाय प्रथममनुरूपं दृष्टान्तं गाथाद्वयेन प्रदर्शयति-तमेव, इत्यादि 'उदगस्स' इत्यादि' मूलम्-- तमेव अवियाणंता' विसमंसि अकोविया । मच्छा वेसालिया चेव.उदगस्साऽभियागमे ॥२॥ उदगस्स पभावेण सुकं गिद्धं तर्मिति उ । केहि य कंकहि य अमिसत्यहिं ते दुही ॥३॥ छाया-- तमेव अविजानन्तो विपमे अकोविदाः । मत्स्या वैशालिकाश्चैव, उदकस्याभ्यागमे ॥५॥ उदकस्य प्रभावेण शुष्कं स्निग्धं तमेत्य तु । ढकैश्च कद्देश्चैवाऽऽमिपार्थिभिस्ते दुःखिनः ॥३॥ .. . आधार्मिक आहार का सेवन करने वालों को कैसा फल भोगना पड़ता है, यह कहने के लिए प्रथम दो गाथाओं से दृष्टान्त दिखलाते हैं" उदगस्स" इत्यादि। ___ शब्दार्थ-'तमेव-तमेव' उस आधाकमिक आहरके दोपों को 'अवियाणंता -अविजानन्तः' नहीं जानते हुए 'विसमंसि अकोविया-विषमे अकोविदाः' अष्टविध कर्मके ज्ञानमें अथवा संसार के ज्ञान में अनिपुण पुरुप 'दही-दाखिनः दुःखी ठोते है 'वेसालिया मच्छा-वैशालिका मत्स्याः' वैशालिजाति के मत्स्य 'उदगस्साभियागमे-उदकस्याभ्यागमे' जलकी रेल (वाढ) आनेपर 'उदगस्सपभावेण-उदकस्य प्रभावेण' जलके प्रभावसे 'सुकं-शुप्कं, मुके हुवे तथा 'णिद्धं ' આધાકર્મ દેષયુકત આહાર ની સીમાત્રનું સેવન કરનાર સાધુઓને કેવુ ફળ ભેગવવું પડે છે, તે હવેની બે ગાથાઓમાં દૃષ્ટાન્ત દઈને સમજાવવામાં આવે છે "उदगस्स" त्याह शाय – तमेव-तमेव' से आधानि४ मारना होषाने 'अवियाण ता-अविजानन्त' नही पता 'विसमसि अकोविया-विषमे अकोविदा' मटविध भना ज्ञानमा अथवा सारना जानमा मनिपुर पु३५ 'दुदी-दुखिन' महुडमाथाय छ 'वेसालियामछा-वैशालिका मत्स्या' वैशाली लताना भत्स्य 'उदगस्साभियागमे-उदकस्याभ्यागमें पानी २८ (धुर) मावाना समय 'उदगस्स पभावेण-उदकस्य प्रभावेण'
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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