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________________ २४८ सूत्रकृतागसूत्रे अन्वयार्थः पूर्ववदेव । व्याख्या मुगमा, नवरम्-ते वादिनः मारस्य मृत्योः पारगा न भवन्ति वारं वारं मृत्युमुखमेव विशन्तीत्यर्थः ॥२५॥ ते अज्ञानिनो यानि यानि स्थानानि प्रामवन्ति, तानि तानि स्थानानि दर्शयति-'नाणाविहाई'इत्यादि ।। मूलम्नाणाविहाई दुक्खाई, अणुहोति गुणो पुणो । संसारचक्वालंमि मच्चुवाहि जराकुले ॥२६॥ छाया नानाविधानि दुःखान्यनु भवन्ति पुनःपुनः । संसारचक्रवाले, मृत्युव्याधिजराकुले ॥२६।। फिर कहते हैं-" ते णावि" इत्यादि ॥ शब्दार्थ-'ते-ते' वे अन्यतीर्थी 'णावि संघिणच्चाण-नापि सन्धि ज्ञात्वा खलु संधिको विना जानेही क्रिया प्रवृत्त होते है 'ते जणा धम्मविओ न-ते जनाः धर्मविद' न' वे लोग धर्म को नहीं जानते हैं 'जे ते उ एव चाइणो-ये ते तु ण्व वादिन' मिथ्यासिद्धांतकी प्ररूपणा करने वाले वे अन्यतीर्थी 'न मारस्स पारगा-मारस्य पारगा न' मृत्यु को पार नहीं कर सकते हैं ॥२५॥ - अन्वयार्थ - अर्थ और व्याख्या पूर्ववत् ही हैं। विशेपयह है कि-वे वादी मृत्यु से पार नहीं होते अर्थात् वार वार मृत्यु के मुँह में ही प्रवेश करते हैं ॥२५॥ qणी सूत्रा२ ४९ छे । (" तेणावि") त्याह शम्दार्थ-ते-ते'ते अन्य तीथीमा ‘णावि स धिणच्चा ण-नापि सघि शात्या खल' अक्सरने या विना लियामा प्रवृत्त थाय छे 'ते जणा धम्मविओ न-ते जना' धर्मविद' न' तसा धर्मने समाता नथी 'जे ते तु एव वाइणो-ये ते तु एवं वादिनः मिथ्या सिद्धातनी प्र३५ । ४२वावाणा मेवा ते अन्य तीथा 'न मारस्स पारगा-मारस्य पारगा न' भृत्युने २ ४ नया (अन्वयार्थ) આ ગાથાને અર્થ અને વ્યાખ્યા પૂર્વવત્ જ છે. અહી એટલી જ વિશેષતા સમજવાની છે કે તે અન્ય મતવાદીઓ મૃત્યુના પારગામી થતો નથી એટલે કે વાર વાર મેતના મુખમાં પ્રવેશ કરે છે . ૨૫
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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