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स्वतंत्र स्वरूप
जैन दर्शन, जिन स्वरूप ही मेरा है, अबद्ध पूर्ण स्वतंत्र है महावीर के शाशन के जैनों महावीर ने तो कहा मेरे से पहले अनंत तीर्थंकर हो गये और वे सभी भी इसी जिन स्वरूप को पाकर बता गये, जो पूर्ण स्वतंत्र है.
ऐसा शाश्वत जिन स्वरूप कैसे तो बंध सकता है यह स्वरूप कैसे एक गुरु वाणी, अथवा कोई भी एक संप्रदाय में भी बंध कर रह सकता है यह स्वरूप तो खुद ही नित्य, निरंजन, ज्ञानानंद, पूर्ण स्वतंत्र है.
यह जिन स्वरूप स्वयं में ही परिपूर्ण सदैव के लिये नित्य भी है, और स्वयं ही परिणमता अनित्य भी स्वयं में एक भी है और अनंत गुणों से भरपूर भी अनादि से अनंत समय तक रहने वाला तत्व ही है.
जिन दर्शन भी स्वयं में ही पूर्ण स्वतंत्र सदैव से ही है अनंत तीर्थंकरों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों से और अनंत साधुओं से सुशोभित एक ही तो दर्शन है ऐसा एक, अनेक में समाया आदि अनंत ही तो है.
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