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तू परद्रव्यों के विचार, संकल्प, कल्पनाओं को छोड़. ये तेरे नहीं. सारे द्रव्य भी स्वयं में ही परिपूर्ण हैं, और तू भी तुझमें ही परिपूर्ण है. ज्ञानानंद, ज्ञानस्वरूप है
तुझे किसी को कुछ देना नहीं, और किसीसे कुछ लेना भी नहीं. यही विधि का विधान है क्यों अज्ञानमय पाप ही करने पर तुला है? इस लेन देन में दुख ही दुख भरा है
परद्रव्य मेरे कर्म हो ही नहीं सकते, मैं परद्रव्य का कर्म भी असंभव ही है मुझे मेरे स्वयं में भी कुछ करना नहीं, मैं भी पूर्ण मेरा परिणमन भी पूर्ण स्वतंत्र ही है
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