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ताजमहल
ताजमहल विश्व का अचरज, एक कला की, संगमरमर की, प्यार की बेमिशाल निशानी है प्यार की मृत्यु ही उसकी बुनियाद भी है, रागादि भावों की मृत्यु ही शुद्ध शाश्वत भी है.
बुनियाद दो दिलों के धडकते प्यार में थी, अथवा अकेले राजा के प्यार भरी याद में थी शाश्वत सत की बुनियाद भी वर्तमान में ही अकेले ध्रुव निज परमात्मा की दृष्टि में ही है.
अकेला हुआ राजा, तभी तीव्र याद में वो बना भी सका ऐसी प्यार की बेमिशाल निशानी को अकेला होता हूं मैं, अतीन्द्रिय, निर्विकल्प तभी तो प्रगटता है, बेमिशाल निज स्वरूप मेरा.
ताजमहल बनाने वाले सारे कारीगरों के काटे गये थे हाथ, सो न बने कभी कोई दूजा ताजमहल मैं भी जब काटता हूं सारे-के-सारे शुभ भाव, तभी न बने कोई दूजा भव और रहूं परम स्वरूप ही.
ताजमहल भले कितना भी हो बेमिशाल और भले हम कितनी भी करें उसकी सम्हाल फिर भी है उसकी उम्र की मर्यादा, मैं त्रिकाल निज बेमिशाल स्वरूप हूं अमर्यादित स्वयं बना बनाया सिद्ध.
मुझ आत्म स्वरूप में है ऐसी निर्मलता, स्वच्छता, सुन्दरता, न पाई जाय किसी संगमरमर में सहस्त्र कलाओं से परिपूर्ण मैं, न है मेरा कोई भी मुकाबला, न कोई अचरज इस संसार में,
मुझसे मेरा ही प्यार, इतना अटूट, तन्मय एक दूजे में, कि न हो सके ऐसा प्यार दो दिलों में मैं मुझ में ही ऐसा सम्पूर्ण, अखंड, अभेद, कि कोई दो मुझ जैसे एक न कभी हुए, न हो सकते.
ऐसा सत, चमत्कार है, हर एक आत्मा, क्यों न करे तू विश्वास खुद ही का, यही तो रहा एक बड़ा अचरज इस विश्व का, कैसे हो भी सकता और कोई भी अचरज इसके सामने इस विश्व का.
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