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समय की बलिहारी
कहते हैं समय सभी दर्दो की दवा है समय के साथ बड़े से बड़ा दुःख भी आदमी सह लेता है. सहना सीख ही जाता है. क्या इस बात में सच भी है?
सुबह हो या शाम मिथ्यात्व की नहीं शाम आदमी दुखी होता ही क्यों है? जो उसे अच्छा लगे, प्रिय लगे उसीका छूट ना ही तो है रोगी शरीर समय से ही नहीं दवा से ठीक होता है.
मिथ्यात्वी, अज्ञानी जो चीज ही उसकी नहीं उनको ही प्रिय बना वियोग में दुखी है इस अज्ञान की दवा तो ज्ञान ही है, समय क्या करे? समय तो दुख में जीने का आदि ही बना सकता है.
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