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संपादकीय
मलधारगच्छीय आचार्यदेव श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी रचित भवभावनाप्रकरण वैराग्यप्रधान उपदेशग्रन्थ है। अनित्यादि बारह भावना इसकी प्रतिपाद्य वस्तु है। इस ग्रन्थ में संसारभावना का विस्तार से वर्णन किया है अतः इसका नाम भवभावना है। ग्रन्थान्तर में बारह भावनाओं में अंतिम भावना धर्मसाधक अर्हतों के गुण की भावना है। परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में उसके स्थान पर जिनशासन के गुण की भावना है। मूलकर्ता आचार्यदेवने ही स्वोपज्ञ वृत्ति की भी रचना की है। वृत्ति में विषय संबंधित दृष्टान्त पद्यमय प्राकृत भाषा में है, केवल भवभावना के विषय में बलिराजा का दृष्टान्त संस्कृत भाषा में है। इस दृष्टान्त की शैली उपमितभवप्रपञ्चकथा की याद कराती है। आचार्यदेव श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.का इतिवृत्त प्रसिद्ध है। आप शरीर के प्रति अतीव निःस्पृह थे, हमेशा मलिन वस्त्र धारण करते थे अतः आपको सिद्धराज जयसिंह ने मलधारी विशेषण से विभूषित किया था। इसी कारण आगे आपका गच्छ मलधारगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
अद्यावधि इस ग्रन्थ पर स्वोपज्ञ वृत्ति से अतिरिक्त कोई व्याख्या आदि ज्ञात नहीं थे। पूना स्थित भाण्डारकर प्राच्यविद्या संशोधन संस्था में प्रस्तुत ग्रन्थ की अवचूरि की पाण्डुलिपि (हस्तप्रत) के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। इस प्रत की विशेषता को पहचानकर श्रुतस्थविर परम पूज्य प्रवर्तक श्री जम्बूविजयजी म.सा. ने इसकी सूक्ष्मचित्रपट्टिकाकृति (माइक्रोफिल्म कोपी) करवाई थी। [वस्तुतः संशोधन हेतु हमने इस सूक्ष्मचित्रपट्टिकाकृति (माइक्रोफिल्म कोपी) का ही उपयोग किया है।] भाण्डारकर प्राच्यविद्या संशोधन संस्था के अलावा अन्यत्र कहीं अवचूरि की पाण्डुलिपि (हस्तप्रत) के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं हुई। प्रायः अवचूरि की यह एकमात्र पाण्डुलिपि है। संस्था
१ धम्मस्स साहगा अरिहा (नवतत्त्व) २ उत्तमे य गुणे जिणसासणम्मिा (भ.भा.१०)