________________
१७२
भवभावना
सुयमाणीए माऊइ सुयइ जागरइ जागरंतीए। सुहियाइ हवइ सुहिओ, दहियाए दक्खिओ गब्भो॥२६५॥ कइया वि हु उत्ताणो, कइया वि हु होइ एगपासेण। कइया वि अंबखुज्जो, जणणीचेट्ठाणुसारेण॥२६६॥ इय चउपासो बद्धो, गब्भे संवसइ दुक्खिओ जीवो। परमतिमिसंधयारे, अमेज्झकोत्थलयमज्झे व॥२६७॥ सईहिं अग्गिवन्नाहिं भिज्जमाणस्स जंतुणो। जारिसं जायए दुक्खं गब्भे अट्ठगुणं तओ॥२६८॥ पित्तवसमंससोणियसुक्कट्ठिपुरीसमुत्तमज्झम्मि। असुइम्मि किमि व्व ठिओ, सि जीव ! गब्भम्मि निरयसमे॥२६९॥ इय कोइ पावकारी, बारस संवच्छराइं गब्भम्मि। उक्कोसेणं चिट्ठइ, असुइप्पभवे असुइयम्मि॥२७०॥ तत्तो पाएहिं सिरेण वा वि सम्मं विणिग्गमो तस्स। तिरियं णिग्गच्छंतो, विणिवायं पावए जीवो॥२७१॥ गब्भदुहाई दटुं, जाईसरणेण नायसुरजम्मो। सिरितिलयइब्भतणओ, अभिग्गहं कुणइ गब्भत्थो॥२७२॥
अइविस्सरं रसंतो, जोणीजंताओ कह वि णिप्फिडइ। माऊएँ अप्पणोऽवि य, वेयणमउलं जणेमाणो॥२७३॥ जायमाणस्स जं दुक्खं मरमाणस्स जंतुणो। तेण दुक्खेण संतत्तो न सरइ जाइमप्पणो॥२७४॥ दाहिणकच्छीवसिओ, पुत्तो वामाए पुण हवइ धूया। उभयंतरम्मि वसिओ, नपंसओ जायए जीवो॥२७५॥ छुहियं पिवासिसं वा, वाहिग्घत्थं च अत्तयं कहिउं। बालत्तणम्मि न तरइ, गमइ रुयंतो च्चिय वराओ॥२७६॥ खेलखरंटियवयणो, मुत्तपुरीसाणुलित्तसव्वंगो। धूलिभुरुंडियदेहो, किं सुहमणुहवइ किर बालो ?॥२७७॥ खिवइ करं जलम्मि वि, पक्खिवइ मुहम्मि कसिणभुयगं पि। भुंजइ अभोज्जपेज्जं, बालो अन्नाणदोसेण॥२७८॥