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परिशिष्ट १
एक्को कम्माइं समज्जिणेइ भुंजइ फलं पि तस्सेक्को। एक्कस्स जम्ममरणे, परभवगमणं च एक्कस्स ॥५५॥ सयणाणं मज्झगओ, रोगाभिहओ किलिस्सइ इहेगो । सयणोऽवि य से रोगं, न विरिंचइ नेय अवणेइ॥५६॥ मज्झम्मि बंधवाणं, सकरुणसद्देण पलवमाणाणं। मोत्तुं विहवं सयणं, च मच्चुणा हीरए एक्को ॥५७॥ पत्तेयं पत्तेयं, कम्मफलं निययमणुहवंताणं । को कस जए सयणो ?, को कस्स परजणो एत्थ ? ॥ ५८ ॥ को केण समं जाय ?, को केण समं परं भवं वयइ ? | को कस्स दुहं गिण्हइ ?, मयं च को कं नियत्तेइ ?॥५९॥ अणुसोयइ अन्नजणं, अन्नभवंतरगयं च बालजणो। न य सोयइ अप्पाणं, किलिस्समाणं भवे एक्कं ॥६०॥ पावाइं बहुविहाइ, करेइ सुयसयणपरियणणिमित्तं। निरयम्मि दारुणाओ, एक्को च्चिय सहइ वियणाओ॥६१॥ कूडक्कयपरवंचणवीससियवहा य जाण कज्जम्मि। पावं कयमिण्हिं ते, ण्हाया धोया तडम्मि ठिया॥६२॥ एको च्चिय पुण भारं, वहेइ ताडिज्जए कसाईहिं। उप्पण्णो तिरिएसुं. महिसतुरंगाइजाईसु॥६३॥ इट्ठकुटुंबस्स कए, करइ नाणाविहाइं पावा । भवचक्कम्मि भमंतो, एक्को च्चिय सहइ दुक्खाई ॥६४॥ सयणाइवित्थरो मह, एत्तियमेत्तो त्ति हरिसियमणेण । ताण निमित्तं पावाइ जेण विहियाइ विविहारं ॥ ६५॥ नरयतिरियाइएसुं, तस्स वि दुक्खाइं अणुहवंतस्स। दीसइ न कोऽवि बीओ, जो अंसं गिण्हइ 'दुहस्स॥६६॥ भोत्तूण चक्किरिद्धिं, वसिउं छक्खंडवसुहमज्झम्मि। एक्को वच्चइ जीवो, मोत्तुं विहवं च देहं च॥६७॥ एक्को पावइ जम्मं, वाहिं वुड्ढत्तणं च मरणं च। एक्को भवंतरेसुं, वच्चइ को कस्स किर बीओ ?||६८॥
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