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पाप-पंक में मग्न, विश्व के हैं सब प्राणी । मल-प्रक्षालन..... . हेतु, नाथ की मंगल वाणी।। प्रभु-पद-पंकज में जलधारा, अर्पित करते जो प्राणी।। हो निश्चय नित्य विश्व में, शान्तिसुधा वह कल्याणी।।
॥ शांतये शान्तिधारा ॥
श्री शान्तिनाथ भगवान को, जो पूजे मन लाय। स्वर्गों में संशय नहीं, निश्चय शिवपुर जाय।।
इत्याशीर्वादः
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