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जो ध्यान धरे उन सिद्धराज, पावे अविचल शुभ सुक्खसाज।।11।
हम नमन करे उर भक्ति धार, सूरजमल विनवे बारबार। यह आश हमारी पूरपूर, प्रभु, कर्म महारिपु चूर चूर 12।।
धत्ता
जय सिद्ध महन्ता शिवतिय कन्ता आत्म रमन्ता ध्यावत हूँ। जय कर्म विनाशी सुगुण प्रकाशी शुभ गुण राशी याजत हूँ।
ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
सोरठा
पूजो भाव सुधार सिद्ध महा जिन राज को । ते उतरे भवपार राज करे शिव राय को।। (इत्याशीर्वाद)
श्री आचार्य परमेष्ठी पूजा
(हरि गीता)
निर्ग्रन्थ सूरिपद विराजे, ध्याय आतम ध्यान को । गुणतीस छह पालत सदा ही कहत हित मित बानि को ।। हम करत आव्हानन प्रभोजी मो हृदय में आइये । अष्ट विधि से पूजते हम कर्म अष्ट नशाइये।।
ऊँ ह्रीं षट्-त्रिंशद् गुण सहित आचार्य परमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं षट्-त्रिंशद् गुण सहित आचार्य परमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं षट्-त्रिंशद् गुण सहित आचार्य परमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
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