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अक्षत अणियारे उज्ज्वल प्यारे धोय संभारे हम लावे। बहु पुंज चढावे तुम गुण गावे सुख अति पावे हर्षावे।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता।
मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
चम्पा मच कुन्दा अमल सुगन्धा भ्रमर अनन्दा थालभरा।
मैं फूल चढ़ाऊं श्रेष्ठ कहाउं काम नशाउं दुष्ट खरा।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता।
मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यः काम वाणं विनाशनाय पुष्पाणि निर्वपामीति स्वाहा।
ले घेवर फेणी लाडु पेडा व्यंजन से बहु थाल भरे। जिनपद में चोडु दुई कर जोडु क्षुधा रोग तत्काल हरे।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता।
मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो: क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
हम घृत भर लावें मन हर्षावे चरण चढ़ावे दीप महा। मोहान्ध नशावे तुम गुण गावें पावे सम्यग्ज्ञान अहा।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता।
मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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