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श्रीफल लोंग सुपारी जानो, खारक आदि भले फल आनो।
स्वच्छ पात्र में धर कर लाई, पूजों प्रवचनवत्सल भाई।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
नीर गन्ध अक्षत सुभ भाये, चरु दीपक फल धूप सु लाये। ___ अरघ बना अपने कर लाई, पूजों प्रवचनवत्सल भाई॥ ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकाध्य - मुनियानन्द की चाल पत्र शुभ ऊजरे, पुष्ट चिकने सही, दीर्घ मौली किये, हर्ष मन की मही।।
तासमें बानि जिनसूत्र उतराइये, भाव प्रवचनवात्सल्य जजि गाइये।। ऊँ ह्रीं श्री शुभपत्रोत्कीर्णन प्रवचनवात्सल्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अंक चांदी तथा, कनक के मांड़िये, सुभग आकार धर, भक्ति अघ छाँ डि ये। ___ या विधो हर्ष सिद्धान्त उतराइये, भाव प्रवचनवात्सल्य जजि गाइये।।। ऊँ ह्रीं श्री मनोज्ञाक्षरलेखनप्रवचनवात्सल्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तास जर चिकन किमखाब मसरू सही, और उत्कृष्ट बहुमोल तिनको कही।
लाय उर भक्ति, औछांड बनबाइये, भाव प्रवचनवात्सल्य जजि गाइये।। ऊँ ह्रीं श्री मनोज्ञबहुमूल्यबन्धन प्रवचनवात्सल्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भले श्रुत राखने कनक चांदी तने, काष्ठ के सुभग पट्ट, उग्र तिनके बने।
करे पट्टा इसी, भांति मन लाइये, भाव प्रवचनवात्सल्य जजि गाइये।। ॐ ह्रीं श्री सुभगकाष्टपत्रकरण प्रवचनवात्सल्यभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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