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नानारस नैवेद्य बनाय, सुभग पात्र में मोदक लाय। पूजों प्रवचन जिनधुनि सोय, ताके फलें क्षधा नहिं होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
रतनदीप तमनाशक जान, कनकथाल भर आरति ठान। पजों प्रवचन जिनधुनि सोय, ताफल मिथ्यातमक्षय होय।। ॐ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
धूप करीदसविध गंध लाय, अगनि मांहि खेऊं हरषाय। पूजों प्रवचन जिनधुनि सोय, ताफल अष्टकरम क्षय होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल खारक लोंग बदाम, पूंगीफल आदिक शुभ नाम। पूजों प्रवचन जिनधुनि सोय, ताके फलशिव को पद होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
नीरगन्ध तन्दुल सुम जान, चरु दीपक फल धूप बखान।
पूजों प्रवचन अध्य संजोय, ताफल आवागमन न होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकायं (चौपाई छन्द) एकादश अंग जिनकी वान, तामधि नानाभेद बखान।
ये सब संशय नाशनहार, पूजों प्रवचन है सुखकार।। ॐ ह्रीं एकादशांगसहितायै श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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