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________________ जयमाला मुनयानन्द की चाल बहुश्रुत जगतगुरु, सकल गुणधार है, श्रुतसागरतनों, लहे प्रभु पार है। राग बिन जगत के, बन्धु सम हितकारा, नमों तिन चरण फल, होय मो अघहरा।। आप पढ़ि शिष्यन की, देत उपदेश जी, तासको धार भव्य लहे मुनिभेष जी। ध्यानाध्ययन मांहि, निश-दिना सुखमय खरा, नमों तिन चरण फल, होय मो अघ-हरा।। करै बहुभांति तप, ऋद्धि तिनपै घनी, पापकी बेल जड़मूलतें सब हनी। करत दर्शन लहे, पुण्य बड़ शुभधरा, नमों तिन चरणफल, होय मो अघ-हरा।। नाम गुरु का लिये, ठाम नीको लहे, ज्ञान उर उपजे वा, पाप अरिको दहे। बहुश्रुत भक्ति तें भरम भागे खरा, नमों तिन चरण फल, होय मो अघ-हरा।। चहों भव भव विर्षे, भक्ति बहु शास्त्रकी, और नहिं चार मोहि, राज सब भरत की। अरज यह मो तनी, भक्ति दे जग गुरा, नमो तिन चरण फल, होय मो अप-हरा।। दोहा भक्ति उपाध्या की किये, भव उपाधि नश जाँय। मरण मिटे जनमें नहीं, इमि लख पूजत पांय।। ॐ ह्रीं बहुश्रुतिभक्ति भावनायै पूर्णाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 920
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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