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दोहा त्याग तरन तारन सही, त्याग जगत गुरु सोय। मैं पूजों मन वचन तन, त्याग भावना जोय।।
ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै पूर्णाध्यम्।
7. तपो भावना पूजा
(अडिल्ल छन्द) तप ही वज्रसमान, पापगिरि को सही, तप ही भवदधि-नाव, धरे शिव की मही। तप ही भव शरण, हरे भव दख सबै, सो तप मैं इहां थापि, जजों मन वच अब।।
ॐ ह्रीं श्री तपो भावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ___ऊँ ह्रीं श्री तपो भावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री तपो भावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
(गीता छन्द) पदमद्रह को नीर निर्मल, कनकझारी में धरों। उर भक्ति करि गुण गाय तपके, शीशतें नमकी करो। इह भली भावन तप सु केरी, कौन उपमा गाय है। मैं जजों तप मनवचन काय, तीर्थपद की दाय है।। ऊँ ह्रीं श्री तपोभावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
घसि अगर चन्दन नीर सेती, महागंध का भारजी। मैं कनकझारी मांहि धरिहों, नमों तप गुन धारजी।।
ताफलै भव आताप नाशे होय समता भाय है। मैं जजों शुभ तप भावना को, तीर्थपद की दाय है।। ऊँ ह्रीं श्री तपोभावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा।
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