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नीर गन्ध अखत पुष्प, लेय चरु दीप जी, धूप फल अध्य तें कर्म सब टीप जी। पूजिये विनयतें विनयभावन सही, तासफल पूज्यपद, लहे निश्चय कही।
ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकाय
(अडिल्ल छन्द) पढ़े विनयतें पाठ विनयतें जो सुने, धरे विनयतें पुस्तक पुट्ठा शुभ ठने। अक्षर चांदी कनक लिखावे सारजी, विनयसार शुभज्ञान तनों अधिकारजी।।
ॐ ह्रीं श्री ज्ञानविनय भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दरशन शुद्ध सरधान, देखनों जानिये, अवलोकन गुणसार, विनयते आनिये। श्रद्धा दृढ़ उरमांहि, विनय सो सारजी, विनयसार शुभज्ञान तनों अधिकारजी।।
ॐ ह्रीं श्री दर्शन विनय भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जतन समिति का करे, गुपति पाले भलो, महावरत शुध करे, विनययुत सब मिलो। करे जतनतें सोय, विनय विधि है सही, चारित त्रयदश सार जजों विधितें मही।।
ऊँ ह्रीं श्री चारित्र विनय भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
यथायोग्य सब ठाम, विनय सबको करे, देव धर्म गुरु सार, भली धुति उच्चरे। पूजे चाव कराय, भाव शुभ लायजी, सो उपचार सु विनय, महा सुखदायजी।
ऊँ ह्रीं श्री उपचारविनय भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
विनय चार परकार, और बहुभेद है, पूजें जो मन लाय, भली तिस टेव है। विनय भावना सार, जगत में जानिये, सो पूजे मनलाय, बड़ी गुनखानि ये॥
ऊँ ह्रीं श्री विनयसम्पन्नता भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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