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पीपलफल जगम जियरासी, खाय नहीं तिन करुणा भासी।
ममत छाँडि निजआतम ध्यावे, तो सम्यक्त्व पूज्य कहलावे।। ॐ ह्रीं श्री पिप्पलफलभक्षणरहित-दर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ऊमरफल अभक्ष्य तजखाना, शुभ आचारी दया निधाना।
चेतनदेव आपसम भवे, तो सम्यक्त्व पूज्य कहलावे।। ॐ ह्रीं श्री उदुम्बरफलभक्षणरहित-दर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
फल करूंबरा खाय न सोई, शुभ अचार करुणाधर होई।
निराकार फलको जो भावे, तो सम्यक्त्व पूज्य कहलावे।। ऊँ ह्रीं श्री कठुम्बरभक्षणरहित-दर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मक्खीवमन निंद्य मधु जानो, शुभ आचारी होय न खानो।
रसन लोभ त्याग हरषावे, तो सम्यक्त्व पूज्य कहलावे।। ऊँ ह्रीं श्री मधुभक्षणरहित-दर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
(गीता छन्द) दर्शनविशुद्धि भावना शुभ, दोष बिन निर्मल सही। यह मोक्ष वट का बीज नीका, या बिना नहिं शिवमही।।
या देय तीरथनाथ पदवी, महा मंगलदाय है।
सो जजों दर्शन भावना, शुभकाय मनवच लाय है।। ॐ ह्रीं श्री सकलदोषरहित-दर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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