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सोलह कारण विधान (कविवर श्री टेकचन्द कृत)
व्रत माहात्म्य
दोहा
मानो आनो मन गहो, सोलहकारण भाव। नमों जजों जिनपद मिले, भलोमिलो शुभदाव॥1॥
सोरठा
ये धर्म कारण जान, स्वर्ग मुक्ति इनसों मिले। होय पाप की हान, नितप्रति मंगल सम्पजे।।2।।
चौपाई
यह व्रत मानव ही तें होई, देवों का अवसर नहिं कोई। व्रतधारी कों देवा पूजें, व्रतधारी के सब अघ धूजें ॥3॥
पद्धरि छन्द
यह वरत सर्वव्रत ऊंचे जान, ऊंच पद को दायक महान । ऊंचे ही नर पै होय सोय, पूजे जो सो भी ऊँच होय ॥ 4॥
अडिल्ल
कर्मशैल को बरत वज्र सम जानिये, जहाँ वरत तँह अशुभतनी हो हानिये। वरत बड़ी सुरवृक्ष देय वांछित फला, बिन बाँछे जी करे धरे सिध की शिला।
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