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कर्मों के बंधन काट सभी, जो सिद्ध परम पद प्राप्त हुए। करके विनाश घातिया कर्म, अरहन्त और जो आप्त हुए ।।
इन परम पदों की प्राप्ति हेतु, उस मुद्रा का नित आराधन। परमेष्ठी परम पूज्य मुनिवर, अरहन्त सिद्ध को करें नमन।।
ॐ ह्रीं वन्दना आवश्यक भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।। 17॥
तीर्थंकर चऊविश विद्यमान, अरु भावी भूत सभी जिनवर। अरु वर्तमान में भी विदेह में विद्यमान विंशति प्रभुवर
जो सिद्ध अनन्तानंत हुए, मुनिगण करते नित आराधन ।
निज दीक्षागुरु आचार्यप्रवर, को करते मुनि नितप्रति वन्दन।।
ॐ ह्रीं स्तुति आवश्यक भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥18॥
षट आवश्यक में प्रति-क्रमण, प्रतिदिन करते जिनवर यतीश ।
जाने अनजाने दोष लगे, सब मिथ्या हों, कहते मुनीश ।।
आक्रमण स्वार्थवश औरों के, प्रति असम्मान अरु दुखदायी ।
पुन प्रतिक्रमण संकल्प न भूलें दुहराना, अति सुखदायी।।
ऊँ ह्रीं प्रतिक्रमण आवश्यक भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।19।
मुनिराज श्रेष्ठ स्वाध्याय सदा, जीवन में आवश्यक मानें। जिनआगम का आश्रय लेकर आतम स्वरूप को पहिचाननें ।।
स्वाध्याय पंचविध शास्त्र पठन, पृच्छना सुचिंतन सदुपदेश।
बहुशः उच्चारण वारवार, ये सभी ज्ञानवर्धन विशेष ।।
ऊँ ह्रीं स्वाध्याय आवश्यक भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।20।
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