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उपाध्याय परमेष्ठि के, चौदह गुण पहिचान ।।
ॐ ह्रीं दृष्टि भेद प्रभेः चतुर्दश पूर्वरूप जिनागम पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
द्रव्यों के उत्पाद व्यय, ध्रौव्य रूप निज धर्म । पूर्वोत्पाद कथन करे, कहे वस्तु का मर्म ||
पद संख्या इक कोटि है, सब कुछ कथन समर्थ। “गागर में सागर वसै ” करता यह चरितार्थ ।। 12॥
ॐ ह्रीं उत्पाद पूर्व श्रुत ज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
सप्त तत्व, नव अर्थ, षट द्रव्य - अग्रणी पूर्ण । दुर्नय सुनय कथन करै, आग्रायणि सम्पूर्ण।। लाख छयानवै पद धरै, वर्णन करे यथार्थ ।
अर्थदृष्टि छोड़े बिना-मिलता नहिं परमार्थ।।13॥
ॐ ह्रीं आग्रायणी पूर्व श्रुत पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
केवल चक्री इन्द्रपद, की सामर्थ्य महान ।
इनका व्याख्याता बहुल, वीर्यनुवाद प्रधान सत्तर लाख पदों सहित, अतिशय महिमावान। महापुरु की शक्ति, बल, वीरज करे बखान ॥14॥
ऊँ ह्रीं वीर्यानुवाद पूर्व श्रुतज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं
निर्वपामीति स्वाहा।
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