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अरणेन्द्र शुभभाव सहित, परिवार जिनालय आवें।
शांति प्रभु के पद-पंकज की, पूजा नित्य रचावें।।31।। ओं ह्रीं श्री अरणेन्द्रेण स्वपरिवारसहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय
श्री शान्तिनाथाय अध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
अच्युतेन्द्र शुभभाव सहित, परिवार जिनालय आवें।
शांति प्रभु के पद-पंकज की, पूजा नित्य रचावें।।32॥ ओं ह्रीं श्री अच्युतेन्द्रेण स्वपरिवारसहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय
श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
बत्तीस इन्द्रों से प्रपूजित, शान्तिनाथ जिनेश को।
परिपूर्ण अध्य चढ़ाय पाऊँहे प्रभो शिवलोक को।। 33॥ ओं ह्रीं श्री चतुर्णिकायदेवेन्द्रपूजिताय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चतुर्थ बलय पूजा प्रारम्भ
(स्थापना) हे शान्तिप्रभो ! हे शान्तिप्रभो, मेरे मन-मन्दिर में आओ। अघवर्ग-विनाशन-हेतु प्रभो, निज शान्त छवि शुभ दर्शाओ।।1।।
कर्मों के बन्धन खुलते हैं, प्रभु नाम तुम्हारा जपने से। भव-भोग-शरीर विनश्वर तब, क्षणभंगुर लगते सपने से।।2।।
नरजन्म सफल यह होता है, जब ध्यान तुम्हारा आता है। निजरूप में लीन हुआ, प्रभु ! वह, भव-सागर से तर जाता है।।3।। ओं ही श्री सर्वकर्मबन्धनविमुक्त सकलविघ्नविनाशक ! पंचम चक्रेश्वर द्वादशकामदेव ! षोडशतीर्थंकर! अष्टप्रातिहार्यसंयुक्त ! श्रीशान्तिनाथ भगवन ! अत्र अवतर अवतर अत्र
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