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लखते निज में परमपद, प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ।
आत्मबली आचार्य का, वीर्याचार यथार्थ।। ऊँ ह्रीं वीर्याचार गुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।36॥
जो आकुलता निर्मुक्त, और शाश्वत शिवसुख का लक्ष्य लिये। तपते तप, अरु श्रावकगण की कल्याण भावना धार हिये। दश धर्म बना जीवन चर्या, षट आवश्यक अनुराग लिये।
त्रय गुप्ति, पंच आचार दृष्टि, समभाव रूप पीयूष पिये। ऐसे महान आचार्यों को, हम सब करते शत शत वन्दन।
दर्शन से जागे अहो भाग्य, कट जाते कर्मों के बन्धन। ऊँ ह्रीं षट त्रिंशति मूलगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
उपाध्याय परमेष्ठी के 25 मूल गुण
मुनियों के शुध आचार निरूपण करता आचारांग पूर्व। आहार विहार शयन प्रवचन, आदिक विवेक युत हों अपूर्व।। किस भांति समिति त्रय गुप्ति आदि, चर्या में हों यत्नाचारी। नित पढ़ें पढ़ावें उपाध्याय मुनि आचारांग सु हितकारी।। ___ पद अष्टादश सहस से, आचारांग समृद्ध। ।
इसका अनुशीलन करें, हो आचार विशुद्ध।।1।। ऊँ ह्रीं आचारांग जिनागम पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा।
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