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शुभ भाग्य जगे प्रभु आज, फल को भेंट करूँ। प्रभु मोक्ष महाफल काज, श्रद्धा बीज धरूँ।। परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥8॥
ॐ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः फलं निर्वपामीति स्वाहा।
यह अर्घ समर्पित देव, मन में भाव धरूं। गुण अर्घ बनूं स्वयमेव, जीवन सफल करूं।। परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥9॥
ऊँ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अरहन्त परमेष्ठी के 46 मूलगुणों की पूजा।
अतिशय सुन्दर सर्वांग सुधर, अरहन्त देव की देह रहे। ऐसा मन मोहन रूप कि सुरगुरु, वर्णन में असमर्थ रहें।। पुण्यातिपुण्य पूरित जिन पुद्गल, अणुओं से प्रभु देह बनी।
वे औरों को नहीं मिले, अतः सुन्दरता के प्रभु मात्र धनी।।1।। ऊँ ह्रीं अतिशयरूप गुणमण्डिताय अर्हत्परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
अरहन्त देव के सुरभित तन से, संस्पर्शित जो पवन बहे। वह शीतल मंद सुगंध पवन, सबय सुख शान्ति प्रदाय रहे।। सुरभित प्रभु तन से ही सुरभित, जब पवन दिशायें महकाती।
ऐसा लगता ज्यों पारसमणि छू, लौह धरै स्वर्णिम कान्ती।।2।। ॐ ह्रीं सुगन्धिततन रूपातिशय गुणमण्डिताय अर्हत्परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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