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नवमां रविव्रत व्योममयंक, हरे सकल आतंक कलंक।
पथनिर्धारक व्रत रविवार, तक्रसहित ओदन आहार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य पंचमवर्षे नवमरविवासरे क्षायिकवीर्यलब्धि विभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पंचमवर्ष नवमव्रत धरे रबिव्रत भक्ति भाव से करे।
सुख विस्तारक व्रत रविवार, जजों पाश्वप्रभु को नववार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य पंचमवर्षे नवसु आदित्यवारेषु क्षायिकलब्धि विभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
षष्ठ पूजा
छठवां वर्ष प्रथम रबिवार, मास अषाढ़ शुक्ल पतवार।
इसमें रविव्रत नियम प्रमान, केवल एक अन्न अनुपान।। ऊँ ह्रीं श्री रविवारव्रतस्य षष्ठवर्षे प्रथमरविवासरे क्षायिकदर्शन लब्धिविभूषिताय श्री पाश्वनाथ
जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
छठवां वर्ष दतिय रविवार, ऋद्धि सिद्धि दाता अधिकार।
इसमें रविव्रत नियम प्रमान, केवल एक अन्न अनुपान।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य षष्ठवर्षे द्वितीयरविवासरे क्षायिकज्ञान लब्धिविभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
छठवां वर्ष तृतिय रविवार, ऋद्धि सिद्धि दाता अविकार।
इसमें रविव्रत नियम प्रमान, केवल एक अन्न अनुपान।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य षष्ठवर्षे तृतीयरविवासरे क्षायिकसम्यक्त्व लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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