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श्री रविव्रत विधान (श्री कल्याण कुमार जैन 'शशि')
वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, निष्कलंक निश्चल निष्काम। रविव्रत पूजा रचा रहा हूं करके शतशतवार प्रणाम।। गन्धकुटी की सर्वप्रथम यह, फलदायक पूजन प्रक्षाल। प्रस्तुत परम कोष्ठगतपूजा, देवोपम वंदित चिरकाल।। पूज्य जिनेश्वर पार्शवनाथ का, करके विधिपूर्वक आह्वान। भक्ति भावनाओं से प्रेरित कर जिनप्रतिमा का श्रद्धान।। संस्थापन स्वस्तिकमण्डल पर, रविव्रत विधिविधान अनुसार।
भक्तों की पूजा स्वीकारो, है दयाल तत्काल पधार।।
(स्थापना)
उत्तम सामग्री सचित कर, चुनकर लाया विविध प्रकार। जिनवर पूजा को प्रस्तुत हूँ, मनवचकाय त्रियोग सम्हार।।
ऊँ ह्रीं पाश्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अत्र अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः
ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधपनम्।
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