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(सोरठा) सम्यक लब्धि महान, जो भवि पूजै भाव सो। अष्ट कम कू हान, “चंद' अचल हैं शिव
लहै।। ॥ इत्याशीर्वादः॥
क्षायक दर्शन लब्धि पूजा
(दोहा) कर्म दर्शनावरण हनि, केवल दर्शन पाय। स्थापन कर तिन पद जजू, मन वच काय लगाय।। ऊँ ह्रीं अर्हत् क्षायिक दर्शन लब्धि धारक जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। अत्र
तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अष्टक (छंद लक्ष्मीधरा) ल्याय गंगादिकं तीर्थ जलसार है, धारमणि भुंग जन्म मरण क्षयकार है। देव जिनराज के चर्ण पूजूं सही, क्षायिका दर्शनी लब्धि जिन ने लही।। ऊँ ह्रीं दर्शन लब्धिधारक जिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
लाय कश्मीर घनसार चंदन घसा, स्वर्ण के पात्र में धार भव तपनशा। देव जिनराज के चर्ण पूजू सही, क्षायिका दर्शनी लब्धि जिन ने लही।। ऊँ ह्रीं दर्शन लब्धिधारक जिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।2।
अक्षतं उज्ज्वलं मुक्त उनहार है, हेत पद शास्वतं धार कनथार है। देव जिनराज के चर्ण पूजूं सही, क्षायिका दर्शनी लब्धि जिन ने लही।। ऊँ ह्रीं दर्शन लब्धिधारक जिनेभ्यो अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।3।
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