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ऊँ
श्री लब्धि विधान (श्री कवि चन्द्र कृत)
श्री वर्द्धमान पूजा (छंद-पद्धरि)
वर्द्धमान महावीर वीर अति वीर हो, सन्मति पंच जु नाम सुगुण गंभीर हो। ज्ञान लब्धि नव हेत करूं यहां थापना, मम उर तिष्ठो आय देहु गुण आपना।।
ऊँ ह्रीं अर्हन् पंचनामांकित परम देवाधिदेव श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्रावतरावतर संवौषट्
आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं अर्हन् पंचनामांकित परम देवाधिदेव श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः
स्थापनम्।
ऊँ ह्रीं अर्हन् पंचनामांकित परम देवाधिदेव श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अष्टक (छन्द-हीरक)
तीर्थोदय शुचि ल्याइयो, मणि भृंग भराई। जन्म जरा मृत नाशने, त्रय धार चढ़ाई।। नवों लब्धि मोहि दीजिये, सन्मति जिनराई । पूजों मन वच कायतें, मोह मल्ल हराई। ऊँ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदन बावन पावनो, करपूर घसाई। भव तप नाशन कारनै, लायो हरषाई।। नवों लब्धि मोहि दीजिये, सन्मति जिनराई । पूजों मन वच कायतें, मोह मल्ल हराई । ॐ ह्रीं श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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