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नीर गन्धाक्षतं पुष्प चरु सारजी । दीप अरु धूप फल अर्घ मनहारजी ॥ भक्ति भरजन विषै धारि चढवाइयो । त्याग धर्म जजौं स्वर्ग शिवदाइयो || ऊँ ह्रीं श्री उत्तमत्यागधर्मांगाय अनघ्यपदप्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अथ प्रत्येकाध्याणि (चाल - मणुयणानन्दकी )
जानि
कामदेव के समान काय सुन्दर धनी । सुभग आकार मनुदेव तनसी बनी। पुद्-गलीक जिमि चपल चंचल सही। मोह तजि तासुको सु पूजि त्याग शिव लही। ॐ ह्रीं तनममत्व-त्यागधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मात रज मेल मिलि कर्म वश थायजी । गर्भं में रह्यो सु मास नव दुख पायजी।। दूध माँगे बिना न देइ निज मातजी । मोह तजि तासु को सु पूजि त्याग शिव लही। ऊँ ह्रीं जननीममत्व-त्यागधर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बाप बीरज थकी आप मैलो भयो। कालपाय ह्वै जुदा न संग ताको रयो । कौन का-को भयो सर्व स्वारथ सही । मोह तजि तासु को सु पूजि त्याग शिव लही। ऊँ ह्रीं पितृममत्व-त्यागधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पुत्र रूपवंत पूर्व पुण्यतैं लहाइये । पाप के विपाकतैं सुशीघ्र नशि जाइये।। मोहवश होय जिय लहै दुखधाम ही । तासु को ममत्व त्याग धर्म पूजि शिव लही। ऊँ ह्रीं पुत्रममत्व-त्यागधर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पापा साजि राज काज भाग्यतैं लहाइये । तासु रक्षोपहार में स्व-तन गमाइये। भोग परिजन करैं आप श्वभ्र धाम ही। मोह तजि तासु को सु पूजि त्याग शिव लही। ऊँ ह्रीं राज्यममत्व-त्यागधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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