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शौच भाव में नांहि कषाया, शौच भाव सब जग का भाया। शौच धर्म का शरण गहारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा।। शौच धर्म को मुनिगण सेवें, ताफल स्वयं सिद्ध थल लेवें। शौच धर्म समता रस धारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा।। शौच समान और नहिं मिंता, शौच भाव टारै सब चिंता। शौच सदासब जियका प्यारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा।।
(दोहा) शौच सार संसार में करै पवित्र जु भाव। तातें धारों शौच को, भली मिलो यह दाव।।
ऊँ ह्रीं उत्तमशौचधर्मांगाय पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इति उत्तम शौच धर्म पूजा।।
उत्तम संयम धर्म पूजा
(अडिल्ल छन्द) संयम धर्म अनूप दोय विधि जानिये। इक रक्षा षट् काय दया उर आनिये।। मन इन्द्रिय वश करें दूसरो संयमा। सो मैं पूजौं थापि लहौं उत्तम रमा।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांग अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
___ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांग अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांग अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टकम् (बेसरी छन्द) निर्मल नीर भाव कर भीजै, मन मनोज्ञ बासन धरि लीजै।
जिनकी जन्म मरण गद जावें, सो संयम वृष जजि शिर नावै।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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