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विष्टा मूत्र जु वीर्य सवै रिषिराज के, नाना व्याधि हरंत लगत ही साध के। रिद्धि विडौषध धार तास पायन परें, अष्ट द्रव्य कूँ मेलि सदा पूजन करें ॥6॥ ऊँ ह्रीं विडौषध रिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
तिन के तन सूँ पवन लागि जातन लगै, आधि व्याधि बहुरोग विषादिक सब भगै। भूत प्रेत सर्पादि सिंह को भय मिटै, सर्वौषध रिधिधार पूज तैं अघ हटें || 7 || ॐ ह्रीं सर्वौषध रिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्धम् निर्वपामीति स्वाहा।
जिन के कर मैं अमृत होय विष सर्व ही, मूच्छित निर्विष होय वचन सुणि तुरत ही। आशीविषंविष रिद्धिधार मुनिवर तिन्हैं, पूजूँ मन वच काय शुद्ध करि कै जिन्हैं।।8। ऊँ ह्रीं आशीविषंविष रिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
थावर जंगम सर्व आदि के विष भरें, दृष्टि परत तत्काल सर्व छिन में हरै। दृष्टिविषौषध रिद्धिधार मुनिराज कूँ, मनवचनतन करि यजूँ मिटत सब व्याधि कूँ॥9॥ ऊँ ह्रीं दृष्टिविषंविषरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा)
सर्वौषधिरिद्धिधार, सर्वमुनीश्वर हैं तिन्हैं। वसुद्रव्य तैं भरि धार, पूजूँ अर्घ चढ़ा कैं॥10॥
ऊँ ह्रीं आमर्षौषध रिद्धियादि दृष्टि विषंविषरिद्धि पर्यन्त अष्टौषध रिद्धिधारक क्षुद्रोपद्रव सर्वविघ्न विनाशक सर्वरोगहर सर्वशांति करेभ्यः सर्वमुनीश्वरेभ्यः पूर्णार्घम् निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
(दोहा)
जिन के वंदित पूज तैं, सकल व्याधि मिट जाय। औषधरिद्धिधर मुनिन कूँ, नमूँ नमूँ मन लाया।
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