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________________ नगन दिगंबर रूप है, सकल गुणनि को कोष।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।6।। ___ क्रोध कपट मद लोभ को, किंचित नहिं लव लेश। मरति शांति दयामयी वंदित सकल सुरेश।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।7। तुम ऋषि दीनदयाल हो, अशरण के आधार। बार बार विनती करूँ, मोहि उतारो पार।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।8।। जो त्रिभुवन के सब मिलैं, मानव दानव इंद्र। हलै चलें नहिं सबन तें, बलरिधिधार मुनिंद।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय॥9॥ मैं दुःखिया संसार में, तुम करुणानिधि देव। हरो दुःख यह मोतणों, करि हूँ तुम पद सेव।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।10।। तुम समान संसार में, तारण-तरण जिहाज। हे मुनीश कोऊ नहीं, या ते तुम लाज।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय॥11॥ तुम पद मस्तक हम धरै, भरी भक्ति उरमाँहि। निज स्वरूप मय कीजिये, भवसंतति मिटिजाहि।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।12।। (धत्ता) भो करुणानिधि सकल गुणाकर भक्तिहृदय हमतुम धारी। इहभव दुःखहरि अनुपम सुखकरि रिषिवर बलरिधि के धारी।।1।। ऊँ ह्रीं बलरिद्धित्रयधारकेभ्यः सर्वऋषीश्वरेभ्यः जयमालाघु निर्वपामीति स्वाहा। शांति ईति भय मिटै देश सुखमय बसे। प्रजा माँहि धन धान्य महर्द्धिकता लसै। राजा धार्मिक होऊ न्याय मन में चलै। या पूजन फल एह धर्म जिनवर झिलै।। //इत्याशीर्वाद। ।।इति बलरिद्धित्रयधारक रिषीश्वर पंचम कोष्ठ पूजा।। 563
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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