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ऊँ ह्रीं माघकृष्णा अमावस्यां श्री श्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
शुभ दुतिया माघ सुदी को, पायो केवल लब्धी को।
श्री वासुपूज्य भवतारी, हम पूजत अष्ट प्रकारी।। ॐ ह्रीं माघशुक्ला द्वितीयायां श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।12॥
छठि माघ वदी हट घाती, केवल लब्धी सुख लाती।
पाई श्री विमल जिनेशा, हम पूजत कटत कलेशा।। ऊँ ह्रीं माघकृष्णा षष्ठयां श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।13॥
वदि चैत अमावसि गाई, जिन केवलज्ञान उपाई।
पूजं अनन्त जिन चरणा, जो हैं अशरण के शरणा॥ ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा अमावस्यां श्रीअनंतनाथ जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।14॥
मासांत पौष दिन भारी, श्री धर्मनाथ हितकारी।
पायो केवल सदबोधं, हम पूजू छोड़ कुबोध।। ऊँ ह्रीं पौषपूर्णिमायां श्री धर्मनाथ जिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।15॥
सुदि पूस इकादसि जानी, श्री शान्तिनाथ सुखदानी। लहि केवल धर्म प्रचारा, पूनँ मैं अध हरतारा।।
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