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एकादशि पूष सुदी को, अजितेश हतो घाती को। निर्मल निज ज्ञान उपाये, हम पूजत सम सुख पाये।।
ऊँ ह्रीं पौषशुक्ला एकादश्यां श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति
स्वाहा॥2॥
कातिक वदि चौथ सुहाई, संभव केवल निधि पाई। भविजीवन बोध दियो है मिथ्यातम नाश कियो है।
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णा चतुथ्यां श्री संभावनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥3॥
चौदशि शुभ पौष सुदी को, अभिनन्दन हन पाती को।
केवल पा धर्म प्रचारा, पूजूँ चरणा हितकारा।।
ऊँ ह्रीं पौषशुक्ला चतुर्दश्यां अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
एकादशि चैत सुदी को, जिन सुमति ज्ञान लब्धी को।
पाकर भविजीव उधारें, हम पूजत भव हरतारे॥
ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला एकादश्यां श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।5।
मधु शुक्ला पूरणमाती, पद्मप्रभ तत्त्व अभ्यासी। केवल ले तत्त्व प्रकाशा, हम पूजत सम सुख भाशा।।
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