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जयमाला (भुजंगप्रयात) नमस्ते नमस्ते नमस्ते मुनिन्दा। निवारे भली भांति से कर्म फन्दा।। संवारे सु द्वादश तपं वन मंझारी। सदा हम नमत हैं तिन्हें मन सम्हारी।।1।।
त्रयोदश प्रकारं सु चारित्र धारा। अहिंसा महा सत्य अस्तेय प्यारा।। परम ब्रह्मचर्य परिग्रह तजाया। सु धारा महा संयमं मन लगाया।।2।। दया धार भू को निरखकर चलत है। सुभाषा महाशुद्ध मीठी वदत हैं।। करें शुद्ध भोजन सभी दोष टालें। दया को धरे वस्तु लें मल निकालें।।3।। वचन काय मन गुप्ति को नित्य धारें। धरम ध्यान से आत्म अपना विचारें।।
धरें साम्य भावं रहें लीन निज में। सुचारित्र निश्चय धरें शुद्ध मन में।।4।। ऋषभ आदि श्री वीर चौवि स जिनेशा। बडे वीर क्षत्री गुणी ज्ञान ईशा।। खड्ग ध्यान आतम कुबल मोह नाशा। जजें हम यतन से स्व आतम प्रकाशा।।5।।
(दोहा) धन्य साधु सम गुण धरें, सहें परीसह धीर। पूजत मंगल हों महा, टलें जगतजन पीर।। ॐ ह्रीं ऋषभादि वीरांत चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः तपकल्याणकप्राप्तेभ्यः महाध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।
आहार दान के समय मुनिराज ऋषभदेव की पूजन
(पद्धरी)
जय जय तीर्थंकर गुरु महान्, हम देख हुए कृतकृत्य प्राण। महिमा तुमरी वरणी न जाय, तुम शिव मारग साधत स्वभाव।।1।।
जय धन्य धन्य ऋषभेश आज, तुम दर्शन से सब पाप भाज। हम हुए सु पावन गात्र आज, जय धन्य धन्य तप सार साज।।2।।
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