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________________ तेरस सुदि माघ महीना, श्री धर्मनाथ तप लीना। बन में प्रभु ध्यान लगाया, हम पूजत मुनिपद ध्याया।। ऊँ ह्रीं माघशुक्लात्रयोदश्यां श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।15। चौद शुभ जेठ वदी में, श्री शांति पधारें वन में। तहं परिग्रह तज तप लीना, पूजूँ आतमरस भीना।। ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।16। करि परिग्रह सारी, वैसाख सुदी पड़ि वारी । श्री कुन्थु स्वात्मरस जाना, पूजन से हो कल्याणा | ॐ ह्रीं वैसाखशुक्लाप्रतिपदायां श्रीकुन्थुनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥17॥ दूर अगहन सुदि दशमी गाई, अरनाथ छोड़ गृह जाई। तप कीना होय दिगम्बर, पूजें हम शुभ भावां कर।। ॐ ह्रीं अगहनशुक्लाचतुर्दश्यां श्री अरहनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।18॥ अगहन सुदि ग्यारस कीना, सिर केशलोंच हितचीन्हा। श्रीमल्लि यती व्रतधारी, पूजें नित साम्य प्रचारी ॥ ऊँ ह्रीं अगहनशुक्लाएकादश्यां श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥19॥ 493
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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