________________
ऊँ ह्रीं वैशाख शुक्ला एकं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति
स्वाहा।।17॥
अगहन सुदि चौदस मानी, मित्रा देवी हरषानी।
अरि तीर्थंकर उपजाए, पूजे हम मन वच काए। ॐ ह्रीं अगहन शुक्ला चतुर्दश्यां श्री अरितीर्थंकराय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।18॥
अगहन सुदि ग्यारस आए, श्री मल्लिनाथ उपजाए।
है मात प्रजापति प्यारी, पूजत अघ विनशै भारी।। ऊँ ह्रीं अगहन शुक्ला एकादश्यां श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा॥19॥
दशमी वैशाख वद की, श्यामा माता जिनजी की।
मुनिसुव्रत जिन उपजाए, हम पूजत पाप नशाए।। ऊँ ह्रीं वैशाख कृष्णा दशम्यां श्रीमुनिसुव्रत जिनेन्द्राय जन्मकल्याणक प्राप्ताय अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।200
दशमी आषाढ़ वदी की, विपला माता जिनजी की।
नमि तीर्थंकर उपजाए, पूजत हम ध्यान लगाए।। ऊँ ह्रीं आषाढ़ कृष्णा दशम्यां श्रीनमिजिनेन्द्राय जन्मकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।21॥
श्रावण शुक्ला छठि जानो, उपजे जिन नेमि प्रमाणो। जननी सुशिवा जिनजी की, हम पूजत हैं थल शिवकी।।
486