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________________ ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्ला द्वादश्यां श्रीसुपार्शवनाथ जिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।71 शुभ पूस वदी ग्यारस को, है जन्म चन्द्रप्रभु जिनको। धन्य मात सुलखनादेवी, पूजूं जिनको मुनि सेवी।। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा एकादश्यां श्री चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।8। अगहन सुदि एकम जाना, जिन मात रमा सुखखाना। श्री पुष्पदन्त उपजाए, पूजत हूँ ध्यान लगाए।। ॐ ह्रीं अगहन शुक्ला एक श्री पुष्पदन्तजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।9॥ द्वादश वदी माघ सुहानी, नन्दा माता सुखदानी। श्री शीतल जिन उपजाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ॐ ह्रीं माघकृष्णाद्वादश्यां श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।10॥ फागुन वदी ग्यारस नीकी, जननी विमला जिनजी की। श्रेयांसनाथ उपजाए, हम पूजत ही सुख पाये।। ऊँ ह्रीं फाल्गुन दशम्यां श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।11॥ वदि फाल्गुन चौदसि जाना, विजया माता सुखखाना। श्री वासु पूज्य भगवान, पूजूं पाऊँ निज ज्ञाना।। 484
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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