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धूपायन धूप खिवाऊं, निज अष्ट करम जलवाऊं।
पद पूजन करहं बनाई, जासे भव जल तर जाई।। ॐ ह्रीं ऋषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः जन्मकल्याणक प्राप्तेभ्यः अष्टकर्मदहनाय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल उत्तम उत्तम लाऊं, शिवफल जासे उपजाऊं।
पद पूजन करहूं बनाई, जासे भव जल तर जाई।। ऊँ ह्रीं ऋषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः जन्मकल्याणक प्राप्तेभ्यः फलं निर्वपामीति
स्वाहा।
सब आठों द्रव्य मिलाऊं, मैं आठों गुण झलकाऊं।
पद पूजन करहूं बनाई, जासे भव जल तर जाई।। ऊँ ह्रीं ऋषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः जन्मकल्याणक प्राप्तेभ्यः अध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
24 तीर्थंकरों की जन्मकलयाणक तिथि के 24 अध्य
वदि चैत नवमि शुभ गाई, मरुदेवि जने हरषाई।
श्री रिषभनाथ युग आदी, पूजू भव मेट अनादी।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णानवम्यां श्री वृषभनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।।।
दशमी शुभ माघ वदी की, विजया माता जिनजीकी। उपजे श्री अजित जिनेशा, पूजू मेटो सब क्लेशा।।
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