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ऊँ
श्री यागमण्डल विधान पूजन (ब्र. सीतलप्रसाद जी कृत)
कर्मतम को हननकर निजगुण प्रकाशन भानु हैं, अन्त अर क्रम रहित दर्शन - ज्ञान - वीर्य निधान हैं। सुखस्वभावी द्रव्य चित् सत् शुद्ध परिणति में रमें, आइये सब विघ्न चूरण पूजते सब अघ वमें। ऊँ ह्रीं अत्र जिनप्रतिष्ठाविधाने सर्वयागमण्डलोक्ता जिनमुनय
अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं अत्र जिनप्रतिष्ठाविधाने सर्वयागमण्डलोक्ता जिनमुनय अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं अत्र जिनप्रतिष्ठाविधाने सर्वयागमण्डलोक्ता जिनमुनय अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अष्टक (चाल)
गंगा-सिंधू वर पानी, सुवरणझारी भर लानी। गुरु पंच परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई॥1॥
ऊँ ह्रीं अस्मिन् प्रतिष्ठोत्सवे सर्वयज्ञेश्वर जिनमुनिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति
स्वाहा।
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