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परमपदपवित्र प्रोल्लसद्देवयात्र, प्रवर शरण चात्र प्राणिनामप्यमुत्र।।3।। जय जय जिनजैत्र मात्र यारामचैत्र, त्रिदशविधृतवत्र श्वेतचित्रातपत्र। निरतिशय चरित्र श्रीमदर्थोक्तसूत्र, स्वदुरघतरुदात्र श्रायस श्रीकलत्र।।4।।
जय जय जिनतात त्रातरत्यन्तपूत, स्थिरतरसुखदात कर्मसंघातघात। कुमत जलदवात ज्ञेयजात प्रमात, प्रवचनरथसूत ख्यातदेवाभिनूत।।5।। जय जय जिनचन्द्र छिन्नदुर्मोहतन्द्र, प्रणतनरसुरेन्द्र स्वात्मलक्ष्मीन्मुनीन्द्र। स्वतिशयगुणरुद्र प्रीणित प्राणिमन्द्र, प्रवचन सरिदिन्द्र स्फीत भासान्द्रचन्द्र।।6।। जय जय जिनसेव्य त्राससुप्रीत भव्य, त्रिभुवन महितव्य स्वाप्ति संभावितव्य। वरद नमसितव्य प्रत्यहं कीर्तितव्य, स्मृतिपथ निहितव्य श्रेयसे भावितव्य।।7।।
जय जय जिननाथ ज्ञात सम्पत्सनाथ, प्रतिहतरतिनाथ प्राप्त मोहापनाथ। नतसुरनरनाथ श्रीमद्लोकाधिनाथ, श्रुतिक जदिननाथ श्रीवधू प्राणनाथ।॥8॥ नमद निमिषखण्डं खण्डितानंगकाण्ड, हसित लसित तुण्डं ध्यानधीराग्नि कुण्डम्। सुगुणमणिकरण्डं जन्मवाद्धौ तरण्डं, विनमितचिदखण्डं श्रायसानन्दपिण्डम्॥9॥
इत्यानन्द स्तवनेन वेद्यास्त्रिवार प्रदक्षिणं कृत्वा पंचांग प्रणामं कुर्यात्।
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