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ऊँ आं क्रों ह्रीं शशिधरवर्ण शशिचूड़ामणि किरीटालंकृत ठ वर्ण! अत्र मम सन्निहितो भव
भव वषट्।
अथाष्टक ऊँ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय चळं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय फलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सुवर्णवस्त्रान्विशस्त्रहस्तं-विभूषणाङ्गं निजवाहनस्यम्।
समस्तविघ्नौघ निवारणार्थं, नीरादिभेदैः प्रयजे ठ वर्णम्। ऊँ आं क्रो ह्रीं रक्ताम्बराभरणभूषिताय ठ वर्णाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
इत्याह्वानादिकं कर्म क्रियते श्रेयसे मया। तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।।
ॐ आं क्रो ह्रीं शशिधरवर्ण मयूरस्थित ठ वर्ग द्वितीयस्थानसस्थि त ठ बीज...............नामधेयस्य.................सर्वशान्तिं विधेहि स्वाहा।
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