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ऊँ आं क्रों ह्रीं कनकवर्ण-चतुर्भुजालंकृत अ वर्णाय फलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं कनकवर्ण-चतुर्भुजालंकृत अ वर्णाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सुवर्ण वस्त्रान्वितशस्त्रहस्तं-विभूषणाङ्गं निजवाहनस्थम्।
समस्त विघ्नौघ निवारणार्थं, नीरादि भेदैः प्रयजे अ वर्णम्। ॐ आं क्रो ह्रीं कनकवर्ण-चतुर्भुजालंकृत अ वर्णाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
इत्याह्वानादिकं कर्म-क्रियते श्रेयसे मया। तत्सर्वं पूर्णतामेति, शान्तिकान्तिभिरादरात्।। ॐ आं क्रो ह्रीं महामेरुसदृश अवर्ण...............नामधेयस्य. .........सर्वशान्तिं
विधेहि स्वाहा।
शान्तिधारा।
''' वर्णपूजा चतुर्भुजं विद्रुमभूषिताङ्ग त्रिलोचनं गुग्गुलगन्धदेहम्। कृष्णाननं वश्यहनं भजामि, हेमप्रभं भूतहरान्धकारम्।।
ऊँ आं क्रों ह्रीं सुवर्णवर्ण सर्वाभरणभूषित ध वर्ण! एहि-एहि संवौषट्। ऊँ आं क्रों ह्रीं सुवर्णवर्ण सर्वाभरणभूषित ध वर्ण! अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ आं क्रों ही सुवर्णवर्ण सर्वाभरणभूषित ध वर्ण! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट्।
अथाष्टक
ऊँ आं क्रों ह्रीं सुवर्णवर्ण सर्वाभरणभूषित ध वर्णाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं सुवर्णवर्ण सर्वाभरणभूषित ध वर्णाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ आं क्रों ह्रीं सुवर्णवर्ण सर्वाभरणभूषित ध वर्णाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ॐ आं क्रों ह्रीं सुवर्णवर्ण सर्वाभरणभूषित ध वर्णाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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