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87. ॐ ह्रीं अहँ सुश्रुते नमः
89. ऊँ ह्रीं अर्ह सूरये नमः 91. ऊँ ह्रीं अहँ विश्रुताय नमः 93. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वशीर्षाय नमः 95. ऊँ ह्रीं अहँ सहस्त्रशीर्षाय नमः
97. ऊँ ह्रीं अहँ सहस्त्राक्षाय नमः 99. ऊँ ह्रीं अहं भूत-भव्य-भवद् भत्रे नमः
नमः
88. ऊँ ह्रीं अहँ सुवाचे नमः 90. ॐ ह्रीं अहँ बहुश्रुताय नमः 92. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वतःपादाय नमः 94. ऊँ ह्रीं अहँ शुचिश्रवसे नमः 96. ऊँ ह्रीं अहँ क्षेत्रज्ञाय नमः 98. ऊँ ह्रीं अहँ सहस्त्रपादे नमः 100. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वविद्या महेश्वराय
दिव्यभाषापति नाम, प्रारम्भ शतकप्रभैः। नामभिर्वन्दि तं देवं, नाभिजं पूजयेऽष्टधा।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीदिव्यभाषापतिप्रभृति शतनामांकित वृषभजिनेन्द्राय पूर्णाध्य निर्वपामीति स्वाहा।
अथ प्रथम वलये तृतीय कोष्ठे स्थविष्ठादि शतनाम प्रत्येकाध्यं 1. ऊँ ह्रीं अहँ स्थविष्ठाय नमः 2. ऊँ ह्रीं अहँ स्थविराय नमः 3. ऊँ ह्रीं अहँ ज्येष्ठाय नमः
4. ऊँ ह्रीं अहँ पृष्ठाय नमः 5. ऊँ ह्रीं अहँ प्रेष्ठाय नमः
6. ऊँ ह्रीं अहँ वरिष्ठाधिये नमः 7. ऊँ ह्रीं अहँ स्थेष्ठाय नमः । 8. ऊँ ह्रीं अहँ गरिष्ठाय नमः 9. ऊँ ह्रीं अहँ बहिष्ठाय नमः 10. ऊँ ह्रीं अहँ श्रेष्ठाय नमः 11. ऊँ ह्रीं अहँ मणिष्ठाय नमः 12. ॐ ह्रीं अहँ गरिष्ठगिरे नमः 13. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वभुटे नमः 14. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वजे नमः 15. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वेट नमः 16. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वभुजे नमः 17. ऊँ ह्रीं अर्जी विश्वनायकाय नमः 18. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वासिषे नमः 19. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वरूपात्मने नमः 20. ऊँ ह्रीं अहँ विश्वजिते नमः 21. ऊँ ह्रीं अहँ विजितातकाय नमः 22. ऊँ ह्रीं अहँ विभवाय नमः
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