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वस्तु देख के यती उठाव, समिति एषणा शुद्धिकराय।
या जुत सम्यक्चारित सोय, मैं पूजों वसु द्रव्य संजोय।। ओं ह्रीं आदानसमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनि जो वस्तु भूमि में धरे, जियरक्षा तब चित में धरे। निक्षेपणसमिती चितलाय, या जुतचारित जजों सुखाय।। ओं ह्रीं निक्षेपणसमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा
तनमल जहँ भू क्षेपे यती, भूशुद्धी देखे शुभमती। यह व्युत्सर्ग समिति मनलाय, या जुतचारितपूज्यसुभाय।। ओं ह्रीं व्युत्सर्गसमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मनविकल्प जिनध्वनि सम करें, और ठौर नांही मन धरे।
मनोगुप्ति धारें मुनिराज, याजुतवृत्तजजों सतभाय।। ओं ह्रीं मनोगुप्तिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मुनिवच जिन आज्ञा समहोय, ताते पाप लगे ना कोय।
वचनगुप्ति पाले मुनिराज, या जुत वृत्त जजों शिर नाय।। ओं ह्रीं वचनगुप्तिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तनको मुनि वश राखें सोय, बिना प्रयोजन चलना होय।
कायगुप्ति सो जानो सही, याजुत वृत्तजजों शुभ मही। ओं ह्रीं कायगुप्तिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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