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________________ भोजन करते अपने तन से, मुनि जो मल निकसावे। तो आहार तजे गुरु ज्ञानी, जिन आज्ञा उर ध्यावे।। दोष उचार त्याग वृषलोभी, समिति एषणा पाले। या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं उच्चारत्यागान्तरायरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। भोजन करते अपने तन से, निकले मूत्र अजाने। तो आहार तजे गुरु ज्ञानी, जिनधुनि रहस पिछाने।। दोष प्रसार त्याग के मनिवर, समिति एषणा पाले। या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं प्रसारान्तरायरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। भोजनहेतु भूलसे यदि मुनि, शूद्र-गेह में जावे। तो गुरुदेव तजे जीमन को, तिस दिन अनशन लावें। दोष अभोजनगृह प्रवेश तज, समिति एषणा पाले। या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं अभोजनगृहान्तरायरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मूर्छा खाय गिरे यति अथवा, पर को मूर्छित देखे। भवसागर के तीर गये यति, भोजन भक्ष्य न लेखे।। पतनदोष को त्याग मुनीश्वर, समिति एषणा पाले। या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं पतनान्तरायरहितैषणासमितिसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 331
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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