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सचित वस्तुपर रक्खा भोजन, मुनिवर कबहुँ न खावे।
अपने संजम भार लाभ या, सावधान चित लावें।। यह निक्षिप्त दोष तजिके मुनि, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं निक्षिप्तदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भोजन ढांके सचित वस्तु सों तो यति नाहीं खावे। ऐसो कारण आय मिले तो, भोजन ही तज जावे।। 'पिहित' दोष को छोड़ यतीश्वर, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं पिहितदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूरब नेह थकी भोजन लें, तो मुनि दूषण पावे। हारदोष यह त्याग यतीश्वर, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं हारदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सूतक रोगी वृद्ध बाल जो, जलती अग्नि बुझावे। गर्भवती तिय होय नपुंसक, इनि कर मुनि नहिं खावे।। दायकदोष तजे मुनिनायक, समिति एषणा पाले।
या जुत सम्यक्चारित पूजों, सो मेरे अघ टाले।। ओं ह्रीं दायकदोषरहितैषणासमितियुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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